Sunday, September 16, 2007

मेरी पसन्द

-- मेरी पसन्दीदा --
--
गज़ल १
--
ग़म मिलें जितने खुशी का नाम दो,
दर्द ही को ज़िन्दगी का नाम दो ।
वो जुनूं था, जो मिला दर पर तुम्हें
मत इसे दीवानगी का नाम दो ॥
--
मैं समझता हूं इन्हें मजबूरियां,
तुम इन्हें बेगानगी का नाम दो ।
सर झुका है कब से कदमों पे तेरे,
अब तो इस को बन्दगी का नाम दो ॥
--
ज़ुस्तजू मैं उस की दर-दर घूमता,
आशिकी, बेचारगी का नाम दो ।
रो पडे़ औरों के ग़म में जिसकी आँख,
बस उसी को आदमी का नाम दो ॥
--


गज़ल २
--
कोई ताजा सितम ईज़ाद कीजे,
हमारे दिल को फिर बर्बाद कीजे ।
कहो तो जान दे दें जान तुम पर,
लबों से बस जरा इर्शाद कीजे ॥
--
बहुत मायूस हैं सैयाद से हम,
कफ़स से मत हमें आज़ाद कीजे ।
नहीं बसती उजड़ कर दिल की बस्ती,
हमारे दिल को न बर्बाद कीजे ॥
--
शहर वीरान कर देते हो लेकिन,
कोई उजड़ा चमन आबाद कीजे ।
तुम्हें दुनिया से है फ़ुरसत कहाँ,
कभी हमको भी याद कर लीजे ॥

No comments: