Sunday, November 18, 2007

चन्द नग्में ~ मेरे अपने लिखे (१)

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ग़ज़ल
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इस जहाँ में नहीं तो उस जहाँ में ही सही,
पाकर रहेंगे हम तुझे इस दम नहीं तो फिर सही ।
कर ही दिया है तूने जब इन्कार तो ये ही सही,
बदलेगी ये इकरार में इस वक्त नहीं उस वक्त सही ॥
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इश्क के बदले में गर नफ़रत मिली नफ़रत सही,
पा न सके हम तुझे तेरे गम मिले गम ही सही
ज़हर भरे इन जामों में इक बूँद मुहब्बत की न सही,
पी लेंगे हम इन जामों को इक बार नहीं सौ बार सही
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भड़की नहीं है आग मुहब्बत की तो न सही,
चिंगारी अभी तक बाकी है तेरे दिल में नहीं मेरे दिल में सही
चाहत में मराहमों की मिले ज़ख्म तो ये ही सही,
ये ज़ख्म रुलायेंगे तुझे इस वक्त नहीं उस वक्त सही ॥
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रो रहे हैं हम औ' तुझको लगे है नज्म तो ये नज्म सही,
गुनगुनाओगे इसे इस बज्म में नहीं उसमें सही
रोओगे जार-जार इस आँख नहीं उस आँख सही,
रुखसत करोगे अश्क से इस दम नहीं उस दम सही

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