Friday, December 20, 2013

आचारः परमो धर्म....आवरण उजले सही पर आचरण किस के धुले हैं


पिताजी द्वारा रचित और मेरी मनभावन कविता है "आवरण उजले सही पर आचरण किस के धुले हैं....." सटीक बात है आधुनिक समय में |

अच्छे आचरण से ही धर्म का निर्माण होता है, ऐसा आचरण ही धर्म है, पालन करने, धारण करने योग्य है | परन्तु कलियुग है; चाहे प्रथम चरण में ही सही, असर तो होगा ही धर्म पर....आचरण पर | ये श्रृंखलाबद्ध व्यवहार है...आपका आचरण अच्छा नहीं तो आपके बाद आने वाले का भी आचरण अच्छा नहीं होगा बल्कि उससे बुरा होगा....उसको प्रेरणा आप से ही मिलेगी | (याद आया, यहाँ आप को आप न समझें :) ) ये किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित नहीं है बल्कि उतरोत्तर औसत आचरण के गंदले होते जाने की कहानी है | कोई महान सदाचारी हो सकता है परन्तु उसी समय में अन्य कोई कदाचार में लीन हो सकता है | परन्तु औसत धार्मिक आचरण में गिरावट ही आती प्रतीत होती है |

इस सदाचार, कदाचार के बीच एक और खिलाड़ी है जिसे आधुनिक युग में मीडिया कहते हैं इसकी महिमा अति महत्वपूर्ण है जो आपके चाहे, न-चाहे आप के विचार बनाने में अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाता है, यदि आप किसी तरह से इसके प्रभाव में आते हैं | ये सदाचारी को कदाचारी और कदाचारी को सदाचारी बनाने में एकबारगी पूरी जान लड़ा देता है; चाहे वस्तुस्थिति कैसी भी हो | आप अपने घर अखबार बंद कर सकते हैं, अपना TV बंद कर सकते हैं, चैनल बदल सकते हैं पर आखिर अपना ही ना | इनको तो नहीं रोक सकते ना, नक्कारखाने में तूती की आवाज़ | चलेगा वही जो सबको (ज्यादातर को) अच्छा लगेगा, और इन ज्यादातर में सदाचारी भी होंगे और कदाचारी भी और उन के सभी तरह के समांगी, विषमांगी मिश्रण भी | औसत धर्माचरण के नीचे जाने से मांग भी उसी चीज़ की होगी जो धर्माचरण के औसत के नीचे की होगी | तो मांग होगी बलात्कार की घटनाओं की, चोरियों की, चोरों की, भ्रष्ट नेताओं की, कदाचारी 'धार्मिकों' की और मीडिया उस मांग को पूरी करने की हर संभव कोशिश करेगा | मेरा अभिप्राय यह कतई नहीं है की मीडिया ये सब करेगा परन्तु वह ऐसा होते दिखायेगा, उन्हें ज्यादा कवरेज देगा | आखिर दूकान है और चलानी है तो वही साबुन लाना पड़ेगा जो ज्यादा बिकता है |

अब नयी बात पकड़ते हैं, दुकान की तरह, व्यवसाय की तरह सब कुछ होता जाएगा (होना यहाँ भी धर्माचरण चाहिए पर ज्यादा से ज्यादा लाभ पर ध्यान दिया जाता है) | वह चलेगा जो मांग है, इसे एक ही शय रोक सकती है और वह है राज्य (वे लोग जो बताएं की धर्म क्या है और दूरदृष्टि रखते हों ) |  और आप जानते ही हैं कि मांग किसकी है | ये मांग भी मीडिया ही बना या दिखा सकता है कि देखो यही मांग है, यही अधिकतर लोग चाहते हैं अतः आप भी इस से जुड़ो | तो यदि राज्य अधार्मिक या मायोपिया से ग्रस्त हो तो अप्रत्यक्षतः वही होगा जो मीडिया या बहुसंख्या चाहती है या चाहते हुए बताई जाती है, उसे सदाचार और कदाचार से कोई लेना देना नहीं है |

अब इस वाद का कुछ प्रायोगिक उदाहरणों के माध्यम से प्रभाव देखते हैं -
  • TV पर बिकते अन्धविश्वासी तावीज, शंख, भभूत, मूर्ती, कवच और अन्यान्य मनोहारी, सिद्ध वस्तुओं के विज्ञापन - इन्हें धर्म से क्या लेना देना है ईश्वर ही जानता है |
  • TV पर लगातार आते अनर्गल, अतार्किक, अन्धविश्वासी बातें करते, उपाय बताते बाबा लोग - हरी चटनी के साथ सोमवार को समोसे खाने से कौन से देवता प्रसन्न होते हैं :)
  • पर-उपदेस कुसल बहुतेरे वाले बाबा जो हर समय TV पर विद्यमान रहते हैं - क्या अब हिमालय की कन्दाराएँ खाली हो गयी हैं? सब बाबा योग, ध्यान, ज्ञान छोड़ कर TV पर सभी का मोक्ष कराने पर तुल गए हैं ? तुम मोह-माया से दूर रहो तभी सुख मिलेगा पर हम से मत पूछो AUDI मैं बैठने से कैसा मजा आता है, गाड़ी समय से ना आये तो हमें क्रोध बहुत आता है, पर आप क्रोध छोड़ दो :)
  • सुमधुर, सुभाषित, गेय भजनों को कोई जगह न मिलना - या तो किसी CD-DVD का प्रचार हो तब भजन बजेंगे या कोई बाबाजी (ऊपर की श्रेणी में से) गा रहे हों तो बजेंगे | आप सुबह उठ कर भजन सुनना चाहें तो निराशा होगी |
इस सब और ऐसे ही बहुत अन्यों को निरंतर बहुत समय से झेलते-झेलते, चोट खाते धर्म और सदाचार अलग-अलग हो गए हैं, या हमें कोई बताता ही नहीं (कैसे बताएं) | समाज में भ्रष्टाचार है, कदाचार है पर हम धर्म से दूर हैं, डर लगता है | पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी लोग तो धार्मिक विषय में बात करने या पढने से भी डरते हैं....कौन समझाए भाई जब धर्म की दूरदर्शिता को छोड़ दोगो तो क्या होगा ? ऐसा ही होगा |

दोष केवल विज्ञापन देने वालों का ही नहीं है, सुनने वालों का भी है | ईश्वर ने महान यन्त्र दिया है आपका दिमाग, आपका मस्तिष्क इसका प्रयोग करें, बाबाजी का बाबाजी कर लेंगे पर आप अपना करें | स्वयं समझिये, करिये, ज्ञान बढाइये | लालटेन जला कर अपनी आखें बंद मत कर लीजिये, देखने के लिए प्रकाश ही नहीं आखें भी आवश्यक हैं | दूसरा नहीं सुधरेगा, खुद सुधरिए.....धर्म की शरण में जाइए, धर्मान्धता की खोह में नहीं |

धर्म मुक्त करता है, अभय बनाता है, विश्वास देता है; समाज को समाज बनाता है | इस से डरिये मत, भागिए मत यही है जो उद्धार कर सकता है, अनुभूत है, स्वयं प्रकाश्य है, दूरातिदूर दृष्टा है | दो-चार हज़ार नहीं इसका लीलाक्षेत्र करोड़ों-अरबों वर्षों का है बहुत व्यापक है | तुम एक बार आओ तो सही ......

उन्नति वो करते हैं जिन के पास आत्मविश्वास होता है, अपने से, अपनों से जिनका जुड़ाव होता है | आपका धर्म इतना तुच्छ नहीं कि उस से दूर भागना पड़े उसे जानिये और उस पर अधिकार बनाइये |



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NB: किसी के केवल पढ़ने और पढ़ाने के हेतु बिलकुल नहीं लिखा है परन्तु अगर पढ़ते हैं, तो प्रभावित न हों और अपनी स्वयं की चेतना को जगाने की चेष्टा करें | 'वाद' का नितांत अ-समर्थक हूँ, ईश्वर की अनंत सत्ता का क्षुद्रातिक्षुद्र भाग हूँ |

Sunday, November 10, 2013

रघुपति राघव राजा राम..........

बच्चों की अभिलाषा कृष-3 देखने की थी और मन में आया कि चलो अपना भी मन फिर जायेगा, सो इन्टरनेट से शहर के एकमात्र मल्टीप्लेक्स में जिसमें Big Cinema है से टिकट पूरे परिवार के लिए कराया | पिछली बार (शायद बर्फी देखी थी) के मुकाबले टिकट 20 रूपए और महंगी हो कर 200 रूपए फी टिकट मिली, हालांकि अभी भी दिल्ली एनसीआर में काफी सस्ती टिकट में से है | उस पर अच्छा ये हो गया कि 3 के साथ 1 फ्री का ऑफर बिना कुछ किये ही बिग सिनेमा से मिल गया, इन्टरनेट से कराने पर | तो जी 700 के अन्दर-अन्दर जुगाड़ हो गया, पहुँच गए मियां, बीवी बच्चों सहित |

कई दिनों से FM रेडियो पर गाना बज रहा था "रघुपति राघव राजा राम...", ये नहीं पता था की मुई इसी पिक्चर में है | सो जी पिक्चर के शायद शुरूआती आधे घंटे में ही गाना आ गया | देखते ही लगा वाह बापू ! मान गए, छा गए, क्या गाना बनाया है....आप तो वो क्या कहते हैं ....भजन कहते थे न उसे...ye..ye...some spiritual type song. तो बापू आप तो ऊपर निकल लिए हो या कहें निकाल दिए गए हो आप को धरती का तो कुछ पता होगा नहीं | आपने सोचा था (सेक्युलर होते हुए भी शायद) कि ऐसा भजन जिस में ईश्वर और अल्लाह दोनों आते हैं गायेंगे, और भारतीय जनता एक हो जायेगी और अंग्रेजों का भारत छोड़ करा डालेगी | देखा आपने, हमने अंग्रेजों का भारत छोड़ तो क्या उनको कहीं का नहीं छोड़ा |

अब देखो मात्र ऐसा तो था नहीं कि अंग्रेज यूँ गए और हम यूँ भारतीय बन गए और सब हमारा हो गया, अरे बापूजी वो तो बहुत पहले से और बहुत अच्छे से हमारे गुलाम रहने का इंतजाम तसल्लीबख्श कर गए थे | और वो हम हिन्दुस्तानियों की तरह जुगाड़ कर के नहीं गए थे बल्कि पक्का कार्यक्रम बना कर गए थे | शिक्षा में ऐसा पक्का हिसाब बैठा कर गए कि उस समय (मैकाले के समय) की तो पता नहीं, पर अब कोई बिना अंग्रेजी या अंग्रेजियत के बेपढ़ा-लिखा ही माना जाता है |

सो, आपके गाने सॉरी भजन पर आयें, तो अब कोई धोती-कुर्ता-साड़ी टाइप लोग आपके भजन को नहीं गाते हैं बल्कि बालों में Garnier का हेयर डाई लगाये जिससे you know अंग्रेज टाइप लुक आता है एक मैडम ऊंचे और नीचे कपड़े (ऊपर से नीचे और नीचे से ऊंचे) पहने नृत्य करती हैं, वो भी ये मत समझ लेना कि भरतनाट्यम करती हैं.... हे...हे...हे....वो डांस करती हैं | आपने अपने जमाने में तो बस ऐसी इंग्लिश मेम ही देखी होंगी जो बहुत से कपड़े पहनती थीं, आखिर हाथरस और कानपुर कपड़ों की राजधानी जो थे | वैसे उस समय का ठीक-ठीक अंदाजा नहीं, पुरानी हॉलीवुड की पिक्चर तो यही बताती हैं कि बहुत कपड़े पहनती थी, और वैसे आपकी माया भी अपरम्पार थी किसे कैसे देखा हो कोई ठिकाना नहीं | मगर गाना भी कहाँ हो रहा है? डिस्को में, बस गनीमत यही है की दारु पकड़े कोई दिखाई नहीं दे रहा था हा....हा....हा... देखा था कोई डिस्को दक्षिण अफ्रीका या लन्दन में ? तो बस समझ लो :)

मगर ये सब सुन कर कुंठित मत होना, हमने अंग्रेजों की मट्टी पलीद कर रखी है | वो क्या समझते थे की हम बस Bloody Indians ही हैं ? बापू लगा दी है हमने अब वो फर्क ही नहीं कर पाते कौन हिन्दुस्तानी और कौन ब्रिटिश | वो डिस्को जाते हैं, हम भी जाते हैं; वो दारु पीते हैं, हमने भी कोई कसर छोड़ नी रक्खी हे...हे...हे...| जरा कापसहेड़ा बॉर्डर पर गुडगाँव से दिल्ली की तरफ आ जाओ, UK का हर शहर घबरा जायेगा इतने ठेके हैं | कपड़े...बापू हमने सूती, खादी वो सब तो अब छोड़ दिया है...नहीं नहीं मतलब पूरा नहीं छोड़ा है.....Louis Phillip की सूती और Cannaught place की खादी अभी भी पहनते हैं | लड़कियां और लड़के पूरे सलीके से Traditional कपड़े पहनते हैं मगर क्या है कि हिन्दुस्तान में अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों में लोग-बाग़ काम करते हैं तो होली-दिवाली-14 अगस्त (हाँ सही सुना.....मतलब पढ़ा....15 को तो छुट्टी होती है न) को वो लोग कुर्ताज-सलवार्स-साड़ीज पहन कर कार्यालय आ जाते हैं |

क्या कहा....कौन....वासुदेव बलवंत फड़के ? ये कौन हैं जी, हमें क्या पता | हमें तो जी बस Brian Adam जी का पता हैं बहुत अच्छी गिटार बजावें हैं | हम तो हर Thursday मतलब वही आपका बृहस्पतिवार Route-O-4 में जाकर उनका गिटार वादन करते हैं समझ तो कम ही आता है जी but lyrics पढ़ कर 1-2 लाइन गा ही लेते हैं | आपने, सुना है कि कुछ शाकाहारी लोगों के बहकावे में आ कर भगवत्गीता भी पढ़ी थी हमने भी पढ़ी तो नहीं पर सुनी है गीता "यदा यदा हि...." बस और मत बुलवाओ आगे नहीं पता | हमारा तो ज्ञान वेदाज, कृष्णा, योगा से बहुत आगे है विद्यालय में हमें सब कुछ सिखाते हैं |

गणेश चतुर्थी ....हम्म्.....हम्म्म.....हाँ हाँ वही न जब "गणपति बप्पा मोरया ..." गाते हैं, आप क्या समझते हो हमें पता नहीं ? हाँ कब और कौनसे महीने में आती है और हर बार date क्यूँ बदल जाती है ये कुछ नहीं पता |लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ......अरे कितने नाम एक साथ ले दिए ? उनका .....उनका क्या सम्बन्ध है हमें क्या पता KBC थोड़े ना खेल रहे हैं |

लब्बोलुआब ये कि बापू हमने अंग्रेजों को भगा दिया, और खुद हम ही भारतीय नहीं रहे, अंग्रेज हो गए | संस्कृत, संस्कृति, तहजीब पुरानी बातें थी भुला दीं, अब एटिकेट्स का ज़माना है | अरे कहीं मैकाले साब दिख जायें आप को ऊपर तो बता देना भैय्या बड़ी मस्त कट रही है "लन्दन से कम हमारा दिल्ली ना है और अंग्रेजों से कम हम हिंदी ना हैं"

हे...हे.....ही....ही....इतणा घणा काफी है आज......2 अक्टूबर थोड़े ना से |