तो जैसा कि Title से लग रहा है, हमारा ये अनुभव बीकानेरवाला पर नए साल के दिन हुए वाकिये से ताल्ल्लुक रखता है। ये बीकानेरवाला भी हमारे घर के पास ही है, बस २-३ KM होगा घर से, Sahibaabad Industrial Area में है.
तो हुआ यूं कि सुबह से ही मन में था कि आज नाश्ता भी बाहर ही करेंगे और नए साल की शुरुआत नए स्वाद से करें। तो सुबह नहा धो कर और मंदिर पर मत्था टेकते हुए बस पहुंच गए बीकानेरवाला की दुकान पर, तब तक ११ बज चुके थे। सोचा अगर जलेबी मिल जाएँ तो मज़ा आ जाये पर काउंटर पर पता लगा कि साब जलेबी की जगह पनीर जलेबी मिल सकती है। अब पनीर जलेबी क्या होती है और कैसी होती है, ये पता नहीं था तो नए साल मैं खतरा न मोल लेने की ही सोची। फिर मटर कुलचा madam ने और Grilled Sandwich हमने ली और साथ में लस्सी ले ली और इस तरह सुबह तो मस्त हो गयी। घर पर आ कर सो लेने के बाद पहले से बुक Welcome की timing का इंतज़ार किया।
घर से निकले मूवी देखने और मूवी देख कर सोचा कि बीकानेरवाला पर ही डिनर करेंगे। तो मियां, बीवी और बच्चे सहित फिर वहीं पहुंच गए। घर से साले को भी बुलवा भेजा, कि हमारे साथ ही डिनर कर लेगा। अब जब आर्डर करने चले तो एक लफडा तो ये है कि आधा सामान नीचे वाले काउंटर से मिलेगा और आधा ऊपर वाले से, even bill भी अलग अलग काउंटर पर कटाना पड़ेगा। अब साले का मन छोले-भटूरे खाने का था जो नीचे वाले काउंटर पर मिलेंगे और हमें थाली खानी थी और बेटे को chinese platter, जो ऊपर वाले काउंटर से मिलेंगे तो जैसे तैसे भाग-दौड़ करके आर्डर किया अब सवाल आता है खाना मिलने का तो भाई नया साल का दिन और हिन्दुस्तान की भीड़ बस किसी को मिल रहा है, कोई रो रह है, बस चीख-पुकार का आलम था। पहले सीट भी तो खोजनी थी वो भी पासपोर्ट ऑफिस में बाबू से मिलने से kभारी काम नहीं था। जैसे तैसे कर के सीट खोजी और विराज गए, अब खाने का इंतज़ार शुरू हो गया, और थोडी देर में बेटा तो नींद के आगोश में रह-रह कर जाने लगा, बड़ी कोशिश की उसे जगाये रखने की पर khana नही आया और वो सो गया। अब साब 15 मिनट में छोले-भटूरे तो आ गए पर और 25 मिनट मैं थाली भी आ गयी पर chinese platter नहीं मिल और इधर बेटा सोया जा रहा था। इधर छोले-भटूरे पिचकने लगे और थाली भी ठंडी होने लगी।
अब मुझे खीझ होने लगी और गुस्सा भी आने लगा था. तो बस मैं पहुंच गया एक काउंटर पर और पूछा restaurent manager कहाँ है ? तुरंत counter boy ने एक बन्दे को फ़ोन किया within a minute एक बन्दा आया, देखने मैं Manager तो नहीं लग रहा था, तो मैंने पूछा आप manager हैं ? वो बोला "मैं supervisor हूँ Sir, बताइए क्या problem है ?" मैंने दूर से उसे अपनी टेबल पर रखे पिचके हुए भटूरे दिखाए और बताया कि ४५ मिनट से इंतज़ार ही कर रहे हैं. तुरंत वो गया और हम जैसे बहुत से दुखी जनों को देख कर उसने खाना बना रहे लोगों को kitchen में जा कर झाड़ा. तब जाकर एक लड़का हमारी टेबल पर ही Chinese Platter ले कर आया. और साथ ही छोले-भटूरे दोबारा से गरम लाये गए. अब बेटा तो ऐसा सोया कि उठे ही नहीं, तो उसका Chinese Platter पैक करवाया उन्ही supervisor साब से कह कर.
तो साहब, खाना तो हो गया supervisor साब कि फुर्ती भी देख ली. पर दिमाग में एक बात आई कि भाई इतने लोग जो वहाँ खडे दुखी हो रहे थे उन में से कोई क्यों कुछ नहीं बोल रह था ? problem तो सभी को हो रही है, पैसे तो सब दे रहे हैं (अलीगढ़ में मस्त छोले-भटूरे की प्लेट २० rupees में मिल जाती है और यहाँ ५५ rupees की है). हम यहाँ आये किस लिए हैं ? Indeed खाना अच्छा है पर सर्विस भी तो चाहिऐ. और अगर न मिले तो हाय-हाय करने वाले भी. नहीं तो ये नहीं सुधरेंगे.